Wednesday, March 06, 2019
Friday, August 03, 2018
तुम एक गोरखधंधा हो
कभी यहाँ तुम्हें ढूँढा, कभी वहाँ पहुँचा,
तुम्हारी दीद की खातिर कहाँ कहाँ पहुँचा,
ग़रीब मिट गये, पा-माल हो गये लेकिन,
किसी तलक ना तेरा आज तक निशाँ पहुँचा
हो भी नही और हर जा हो,
तुम एक गोरखधंधा हो
[ दीद = vision, पा-माल = Trodden
under foot, Ruined, गोरखधंधा = puzzle,
enigma]
हर ज़र्रे में किस शान से तू जलवानुमा है,
हैरान है मगर अक़ल, के कैसा है तू क्या है?
तुम एक गोरखधंधा हो
[ज़र्रे = grain/speck of dust, जलवानुमा = magical/divine, अक़ल = mind/Thought]
तुझे दैर-ओ-हरम मे मैने ढूँढा तू नही मिलता,
मगर तशरीफ़ फर्मा तुझको अपने दिल में देखा है
तुम एक गोरखधंधा हो
[दैर-ओ-हरम = temple & mosque; तशरीफ़ फर्मा = to take position ]
जब बजुज़ तेरे कोई दूसरा मौजूद नही,
फिर समझ में नही आता तेरा परदा करना
तुम एक गोरखधंधा हो
[बजुज़ = except]
जो उलफत में तुम्हारी खो गया है,
उसी खोए हुए को कुछ मिला है,
ना बुतखाने, ना काबे में मिला है,
मगर टूटे हुए दिल में मिला है,
अदम बन कर कहीं तू छुप गया है,
कहीं तू हस्त बुन कर आ गया है,
नही है तू तो फिर इनकार कैसा ?
नफी भी तेरे होने का पता है ,
मैं जिस को कह रहा हूँ अपनी हस्ती,
अगर वो तू नही तो और क्या है ?
नही आया ख़यालों में अगर तू,
तो फिर मैं कैसे समझा तू खुदा है ?
तुम एक गोरखधंधा हो
[उलफत = love/enamoured; अदम = lifeless;
हस्त = life; नफी
= precious; हस्ती = life/existence ]
हैरान हूँ इस बात पे, तुम कौन हो , क्या हो?
हाथ आओ तो बुत, हाथ ना आओ तो खुदा हो
अक़्ल में जो घिर गया, ला-इंतिहा क्यूँ कर हुआ?
जो समझ में आ गया फिर वो खुदा क्यूँ कर हुआ?
फलसफ़ी को बहस क अंदर खुदा मिलता नही,
डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नही
तुम एक गोरखधंधा हो
[बुत = idol; अक़्ल = mind/Thought;
ला-इंतिहा = boundless; फलसफ़ी = philosopher; बहस=debate]
छुपते नही हो, सामने आते नही हो तुम,
जलवा दिखा के जलवा दिखाते नही हो तुम,
दैर-ओ-हरम के झगड़े मिटाते नही हो तुम,
जो असल बात है वो बताते नही तो तुम
हैरान हूँ मैरे दिल में समाये हो किस तरह,
हाँलाके दो जहाँ में समाते नही तो तुम,
ये माबद-ओ-हरम, ये कालीसा-ओ-दैर क्यूँ,
हरजाई हो जॅभी तो बताते नही तो तुम
तुम एक गोरखधंधा हो
[ माबद-ओ-हरम = temple & moseque; कालीसा-ओ-दैर = church & temple ]
दिल पे हैरत ने अजब रंग जमा रखा है,
एक उलझी हुई तस्वीर बना रखा है,
कुछ समझ में नही आता के ये चक्कर क्या है?
खेल क्या तुम ने अजल से रचा रखा है?
रूह को जिस्म के पिंजड़े का बना कर क़ैदी,
उस पे फिर मौत का पहरा भी बिठा रखा है
दे के तदबीर के पंछी को उड़ाने तूने,
दाम-ए-तक़दीर भी हर सिम्त बिछा रखा है
कर के आरैश-ए-क़ौनाईन की बरसों तूने,
ख़तम करने का भी मंसूबा बना रखा है,
ला-मकानी का बहरहाल है दावा भी तुम्हें,
नहन-ओ-अक़लाब का भी पैगाम सुना रखा है
ये बुराई, वो भलाई, ये जहन्नुम, वो बहिश्त,
इस उलट फेर में फर्माओ तो क्या रखा है ?
जुर्म आदम ने किया और सज़ा बेटों को,
अदल-ओ-इंसाफ़ का मेआर भी क्या रखा है?
दे के इंसान को दुनिया में खलाफत अपनी,
इक तमाशा सा ज़माने में बना रखा है
अपनी पहचान की खातिर है बनाया सब को,
सब की नज़रों से मगर खुद को छुपा रखा है
तुम एक गोरखधंधा हो
[हैरत = confusion; अजल = time
immemorial; रूह=soul; जिस्म =body; तदबीर = action/diligent दाम-ए-तक़दीर=trick of luck; सिम्त = direction;
आरैश-ए-क़ौनाईन = decoration of
both world ला-मकानी = homeless;
नहन-ओ-अक़लाब = place for praying; अदल-ओ-इंसाफ़ = justice and equity मेआर = benchmark; खलाफत = kingdom]
नित नये नक़्श बनाते हो, मिटा देते हो,
जाने किस ज़ुर्म-ए-तमन्ना की सज़ा देते हो?
कभी कंकड़ को बना देते हो हीरे की कनी ,
कभी हीरों को भी मिट्टी में मिला देते हो
ज़िंदगी कितने ही मुर्दों को अदा की जिसने,
वो मसीहा भी सलीबों पे सज़ा देते हो
ख्वाइश-ए-दीद जो कर बैठे सर-ए-तूर कोई,
तूर ही बर्क- ए- तजल्ली से जला देते हो
नार-ए-नमरूद में डळवाते हो खुद अपना ख़लील,
खुद ही फिर नार को गुलज़ार बना देते हो
चाह-ए-किनान में फैंको कभी माह-ए-किनान,
नूर याक़ूब की आँखों का बुझा देते हो
दे के युसुफ को कभी मिस्र के
बाज़ारों में,
आख़िरकार शाह-ए-मिस्र बना देते
हो
जज़्ब -ओ- मस्ती की जो मंज़िल पे पहुचता है कोई,
बैठ कर दिल में अनलहक़ की सज़ा देते हो ,
खुद ही लगवाते हो फिर कुफ्र के फ़तवे उस पर,
खुद ही मंसूर को सूली पे चढ़ा देते हो
अपनी हस्ती भी वो इक रोज़ गॉवा बैठता है,
अपने दर्शन की लॅगन जिस को लगा देते हो
कोई रांझा जो कभी खोज में
निकले तेरी,
तुम उसे झन्ग के बेले में रुला
देते हो
ज़ुस्त्जु ले के तुम्हारी जो चले कैश कोई,
उस को मजनू किसी लैला का बना
देते हो
जोत सस्सी के अगर मन में
तुम्हारी जागे,
तुम उसे तपते हुए तल में जला देते हो
सोहनी गर तुम को महिवाल तसवउर कर ले,
उस को बिखरी हुई लहरों में
बहा देते हो
खुद जो चाहो तो सर-ए-अर्श बुला कर महबूब,
एक ही रात में मेराज करा देते हो
तुम एक गोरखधंधा हो
[नित = everyday, नक़्श = copy/model;
ज़ुर्म-ए-तमन्ना = crime of desire;
सलीबों = cross; ख्वाइश-ए-दीद = desire for divine vison; सर-ए-तूर = one with a halo/Saint/prophet; बर्क- ए- तजल्ली = blessing of divine
menifestation; नार-ए-नमरूद = Furnace
of King Nimrod;ख़लील = friend;गुलज़ार = garden;नूर= light शाह-ए-मिस्र= king of Egypt; अनलहक़ = I am the Truth/I am the God; कुफ्र = apostacy; फ़तवे= religious
decree तल = desert; तसवउर = think; सर-ए-अर्श =
In heaven; मेराज = exaltation]
जो कहता हूँ माना तुम्हें लगता है बुरा सा,
फिर भी है मुझे तुम से बहरहाल गिला सा,
चुप चाप रहे देखते तुम अर्श-ए-बरीन पर,
तपते हुए करबल में मोहम्मद का नवासा,
किस तरह पिलाता था लहू अपना वफ़ा को,
खुद तीन दिनो से वो अगरचे था प्यासा
दुश्मन तो बहर तौर थे दुश्मन मगर अफ़सोस,
तुम ने भी फराहम ना किया पानी ज़रा सा
हर ज़ुल्म की तौफ़ीक़ है ज़ालिम की विरासत,
मज़लूम के हिस्से में तसल्ली ना दिलासा
कल ताज सजा देखा था जिस शक़्स के सिर पर,
है आज उसी शक़्स क हाथों में ही कासा,
यह क्या है अगर पूछूँ तो कहते हो जवाबन,
इस राज़ से हो सकता नही कोई शनसा
तुम एक गोरखधंधा हो
[अर्श-ए-बरीन = from heaven; नवासा = son
of one's daughter; फराहम = offer,तौफ़ीक़=concent/support]
आह-ए-तहकीक में हर गाम पे उलझन देखूं,
वही हालत-ओ-ख़यालात में अनबन देखूं,
बन के रह जाता हूँ तस्वीर परेशानी की,
गौर से जब भी कभी दुनिया का दर्पण देखूं
एक ही खाक से फ़ितरत के तzआदत इतने,
कितने हिस्सों में बटा एक ही आँगन देखूं,
कहीं ज़हमत की सुलगती हुई पतझड़ का सामान ,
कहीं रहमत के बरसते हुए सावन देखूं ,
कहीं फुन्कारते दरया, कहीं खामोश पहाड़ ,
कहीं जंगल, कहीं सेहरा, कहीं गुलशन देखूं ,
खून रुलाता है यह तक्सीम का अंदाज़ मुझे ,
कोई धनवान यहाँ पर कोई निर्धन देखूं ,
दिन के हाथों में फक़त एक सुलगता सूरज ,
रात की माँग सितारों से मज़्ज़यन देखूं ,
कहीं मुरझाए हुए फूल हैं सचाई के ,
और कहीं झूट के काँटों पे भी जोबन देखूं ,
रात क्या शै है, सवेरा क्या है ?
यह उजाला यह अंधेरा क्या है ?
मैं भी नाइब हूँ तुम्हारा आख़िर,
क्यों यह कहते हो के तेरा क्या है ?
तुम एक गोरखधंधा हो
[आह-ए-तहकीक = desire to enquire; गाम = step, उलझन = confusion;
हालत-ओ-ख़यालात = reality &
thought; फ़ितरत= Nature/Characteristic;
तzआदत=division/Contradiction/Lie; ज़हमत = Inconvenience ; रहमत=
Posted by Sudo at 3:16 PM 0 comments
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा
हुए नामवर ... बेनिशां कैसे कैसे ...
ज़मीं खा गयी ... नौजवान कैसे कैसे ...
ज़मीं खा गयी ... नौजवान कैसे कैसे ...
आज जवानी पर इतरानेवाले कल पछतायेगा - ३
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा - २
ढल जायेगा ढल जायेगा - २
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा - २
ढल जायेगा ढल जायेगा - २
तू यहाँ मुसाफ़िर है ये सराये फ़ानी है
चार रोज की मेहमां तेरी ज़िन्दगानी है
ज़र ज़मीं ज़र ज़ेवर कुछ ना साथ जायेगा
खाली हाथ आया है खाली हाथ जायेगा
जानकर भी अन्जाना बन रहा है दीवाने
अपनी उम्र ए फ़ानी पर तन रहा है दीवाने
किस कदर तू खोया है इस जहान के मेले मे
तु खुदा को भूला है फंसके इस झमेले मे
आज तक ये देखा है पानेवाले खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे रोता है
मिटनेवाली दुनिया का ऐतबार करता है
क्या समझ के तू आखिर इसे प्यार करता है
अपनी अपनी फ़िक्रों में
जो भी है वो उलझा है - २
ज़िन्दगी हक़ीकत में
क्या है कौन समझा है - २
आज समझले ...
आज समझले कल ये मौका हाथ न तेरे आयेगा
ओ गफ़लत की नींद में सोनेवाले धोखा खायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा - २
ढल जायेगा ढल जायेगा - २
चार रोज की मेहमां तेरी ज़िन्दगानी है
ज़र ज़मीं ज़र ज़ेवर कुछ ना साथ जायेगा
खाली हाथ आया है खाली हाथ जायेगा
जानकर भी अन्जाना बन रहा है दीवाने
अपनी उम्र ए फ़ानी पर तन रहा है दीवाने
किस कदर तू खोया है इस जहान के मेले मे
तु खुदा को भूला है फंसके इस झमेले मे
आज तक ये देखा है पानेवाले खोता है
ज़िन्दगी को जो समझा ज़िन्दगी पे रोता है
मिटनेवाली दुनिया का ऐतबार करता है
क्या समझ के तू आखिर इसे प्यार करता है
अपनी अपनी फ़िक्रों में
जो भी है वो उलझा है - २
ज़िन्दगी हक़ीकत में
क्या है कौन समझा है - २
आज समझले ...
आज समझले कल ये मौका हाथ न तेरे आयेगा
ओ गफ़लत की नींद में सोनेवाले धोखा खायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा - २
ढल जायेगा ढल जायेगा - २
मौत ने ज़माने को ये समा दिखा डाला
कैसे कैसे रुस्तम को खाक में मिला डाला
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं
जंग जो न कोरस है और न उसके हाथी हैं
कल जो तनके चलते थे अपनी शान-ओ-शौकत पर
शमा तक नही जलती आज उनकी तुरबत पर
अदना हो या आला हो
सबको लौट जाना है - २
मुफ़्हिलिसों का अन्धर का
कब्र ही ठिकाना है - २
जैसी करनी ...
जैसी करनी वैसी भरनी आज किया कल पायेगा
सरको उठाकर चलनेवाले एक दिन ठोकर खायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा - २
ढल जायेगा ढल जायेगा - २
कैसे कैसे रुस्तम को खाक में मिला डाला
याद रख सिकन्दर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनो हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं
जंग जो न कोरस है और न उसके हाथी हैं
कल जो तनके चलते थे अपनी शान-ओ-शौकत पर
शमा तक नही जलती आज उनकी तुरबत पर
अदना हो या आला हो
सबको लौट जाना है - २
मुफ़्हिलिसों का अन्धर का
कब्र ही ठिकाना है - २
जैसी करनी ...
जैसी करनी वैसी भरनी आज किया कल पायेगा
सरको उठाकर चलनेवाले एक दिन ठोकर खायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा - २
ढल जायेगा ढल जायेगा - २
मौत सबको आनी है कौन इससे छूटा है
तू फ़ना नही होगा ये खयाल झूठा है
साँस टूटते ही सब रिश्ते टूट जायेंगे
बाप माँ बहन बीवी बच्चे छूट जायेंगे
तेरे जितने हैं भाई वक़तका चलन देंगे
छीनकर तेरी दौलत दोही गज़ कफ़न देंगे
जिनको अपना कहता है सब ये तेरे साथी हैं
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बराती हैं
ला के कब्र में तुझको मुरदा बक डालेंगे
अपने हाथोंसे तेरे मुँह पे खाक डालेंगे
तेरी सारी उल्फ़त को खाक में मिला देंगे
तेरे चाहनेवाले कल तुझे भुला देंगे
इस लिये ये कहता हूँ खूब सोचले दिल में
क्यूँ फंसाये बैठा है जान अपनी मुश्किल में
कर गुनाहों पे तौबा
आके बस सम्भल जायें - २
दम का क्या भरोसा है
जाने कब निकल जाये - २
मुट्ठी बाँधके आनेवाले ...
मुट्ठी बाँधके आनेवाले हाथ पसारे जायेगा
धन दौलत जागीर से तूने क्या पाया क्या पायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा - ४
तू फ़ना नही होगा ये खयाल झूठा है
साँस टूटते ही सब रिश्ते टूट जायेंगे
बाप माँ बहन बीवी बच्चे छूट जायेंगे
तेरे जितने हैं भाई वक़तका चलन देंगे
छीनकर तेरी दौलत दोही गज़ कफ़न देंगे
जिनको अपना कहता है सब ये तेरे साथी हैं
कब्र है तेरी मंज़िल और ये बराती हैं
ला के कब्र में तुझको मुरदा बक डालेंगे
अपने हाथोंसे तेरे मुँह पे खाक डालेंगे
तेरी सारी उल्फ़त को खाक में मिला देंगे
तेरे चाहनेवाले कल तुझे भुला देंगे
इस लिये ये कहता हूँ खूब सोचले दिल में
क्यूँ फंसाये बैठा है जान अपनी मुश्किल में
कर गुनाहों पे तौबा
आके बस सम्भल जायें - २
दम का क्या भरोसा है
जाने कब निकल जाये - २
मुट्ठी बाँधके आनेवाले ...
मुट्ठी बाँधके आनेवाले हाथ पसारे जायेगा
धन दौलत जागीर से तूने क्या पाया क्या पायेगा
चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा - ४
Posted by Sudo at 3:15 PM 0 comments
Monday, June 26, 2017
Thursday, September 29, 2016
Wednesday, June 15, 2016
Subscribe to:
Posts (Atom)